Islam: A Comprehensive Introduction (Urdu title: Mizan) is an extensive study of the contents of Islam by the author. It is an effort which spans almost two decades of both creative and critical thinking. The entire endeavour is a fresh interpretation of Islam from its original sources. In his own opinion, the reason that he has undertaken it is that interpretation of sacred texts is a human endeavour and since this can never remain fault free, the process should never discontinue. It is as a result of this principle that the author has continued to evaluate and re-evaluate even his own findings.
Similar Posts
वुज़ू और नेल पॉलिश
जावेद अहमद ग़ामिदी अनुवाद: मुहम्मद असजद नाखूनों पर किसी ना किसी तरह की सामग्री से रंग करना आमतौर पर महिलाओं के बनाव-श्रृंगार का हिस्सा है। आज के दौर में अलग-अलग तरह की नेल पॉलिश इसके लिए इस्तेमाल की जाती हैं। इसके नतीजे में यह सवाल उठता है कि ऐसे में वुज़ू किस तरह होगी ?…
व्यावसायिक ब्याज़ (Commercial Interest)
कुछ लोग सोचते हैं कि व्यापारिक उपक्रमों (commercial enterprises) से लिया जाने वाला सूद निषिद्ध (हराम) नहीं है। इस ग़लतफहमी को दूर करते हुए ग़ामिदी साहब लिखते हैं[1]: यह साफ रहना चाहिए कि रिबा का मतलब इससे तय नहीं होता कि क़र्ज़ निजी ज़रूरत, व्यापार या फिर कल्याण परियोजना (welfare scheme) के लिए लिया गया है। तथ्य यह है कि अरबी भाषा…
Al-Mawrid Hind Foundation
As a legatee of the rich intellectual tradition in Muslim history, Al-Mawrid Hind Foundation is a unique institution of learning. A deep concern over the dearth of suitable approaches to Islamic learning in our times gave birth to this institution. Lost in the maze of sectarian prejudices and political wrangling, the true message of Islam,…
దేవుని పాత్ర
దేవుని పాత్ర Click here to Download E-book Playing-God Telugu Edition
ख़िलाफ़त
["इसलाम और रियासत – एक जवाबी बयानिया” पर ऐतराज़ात के जवाब में लिखा गया लेख] जावेद अहमद ग़ामिदी अनुवाद: आक़िब ख़ान इसमें शक नहीं कि “ख़िलाफ़त” का लफ़्ज़ कई सदीयों से “इस्तिलाह”* के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है, लेकिन ये हरगिज़ कोई “मज़हबी इस्तिलाह” नहीं है। मज़हबी इस्तिलाह राज़ी, ग़ज़ाली, मावरदी, इब्न हज़म और इब्न ख़लदून** के बनाने से नहीं बनती और ना ही हर वो लफ़्ज़ जिसे मुसलमान किसी ख़ास मायने में इस्तेमाल करना…
इसलाम और रियासत (एक जवाबी बयानिया) – The Counter Narrative
जावेद अहमद ग़ामिदी अनुवाद: आक़िब ख़ान इस समय जो हालात कुछ इंतिहापसंद तहरीकों ने अपनी कार्रवाइयों से इसलाम और मुसलमानों के लिए पूरी दुनिया में पैदा कर दी है, ये उसी विचारधारा का बुरा नतीजा है जो हमारे मज़हबी मदरसों में पढ़ा और पढ़ाया जाता है, और जिसका प्रचार इस्लामी तहरीकें और मज़हबी सियासी संगठन…