अल्लाह के नाम से जो सरासर रहमत है, जिसकी शफ़क़त अबदी है।
होनी शुदनी! क्या है होनी शुदनी! और तुम क्या जानो के क्या है वह होनी शुदनी ! (1-3)
हो कर रहने वाली! क्या है वह हो कर रहने वाली! और तुम क्या जानो कि क्या है वह हो कर रहने वाली ! (1-3)
समूद और आद ने इस खड़खड़ाने वाली को झुठलाया तो समूद उस आफत से हलाक हुए जो हद से बाहर थी और आद उस तुंद-ओ-तेज़ आंधी से बर्बाद हुए जो सरकश और बेक़ाबू हो गयी। अल्लाह ने यह आंधी उन्हें जड़ पेड़ से उखाड़ने के लिए सात रात और आठ दिन उन पर ठहरा दी। फिर तुम उन लोगों को देखते के इस तरह उस में पिछड़े पड़े हैं, जैसे वह खजूरों के खोखले तने हो। तो अब क्या इन में से किसी को बाक़ी देखते हो ? (4-8)
समूद और आद ने इस खड़खड़ाने वाली को झुठलाया तो समूद उस आफत से विनष्ट हुए जो हद से बाहर थी और आद उस प्रचंड आंधी से बर्बाद हुए जो उग्र और अनियंत्रित हो गयी। अल्लाह ने यह आंधी उन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए सात रात और आठ दिन उन पर ठहरा दी। फिर तुम उन लोगों को देखते कि इस तरह उस में पिछड़े पड़े हैं, जैसे वह खजूरों के खोखले तने हो। तो अब क्या इन में से किसी को बचा हुआ देखते हो ? (4-8)
और यही जुर्म फ़िरऔन और उस से पहले के लोगों ने किया और उन बस्तियों ने भी जो तलपट हो गयीं। इस तरह के उन सब ने अपने परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की। चुनाँचे उस ने उन्हें ऐसी पकड़ पकड़ा जो अपनी शिद्दत में बढती चली गयी। (9-10)
और यही जुर्म फ़िरऔन और उस से पहले के लोगों ने किया और उन बस्तियों ने भी जो तलपट हो गयीं। इस तरह कि उन सब ने अपने परवरदिगार के रसूल की अवज्ञा की। इसलिए उस ने उन्हें ऐसी पकड़ पकड़ा जो सख़्त होती चली गयी। (9-10)
(इसी तरह नूह को झुठलाने के नतीजे में) जब (तूफ़ान उठा और) पानी हद से गुज़र गया तो हम ही थे के हमने तुम्हे कश्ती में उठा लिया, इसलिए के इस सर-गुज़श्त को तुम्हारे लिए नसीहत बना दें और याद रखने वाले कान इस को सुने और याद रखें। (11-12)
(इसी तरह नूह को झुठलाने के नतीजे में) जब (तूफ़ान उठा और) पानी हद से गुज़र गया तो हम ही थे कि हमने तुम्हे कश्ती में उठा लिया, इसलिए कि इस घटना को तुम्हारे लिए शिक्षाप्रद बना दें और याद रखने वाले कान इस को सुने और याद रखें। (11-12)
सो इसी तरह जब सूर में एक ही मर्तबा फूंक मारी जायेगी और ज़मीन और पहाड़ों को उठा कर एक ही चोट में पाश पाश कर दिया जाएगा तो उस दिन होने वाली हो जाएगी और आसमान फट जायेगा, फिर (तुम देखोगे के) उस दिन वह बहुत ही बोदा होगा, और फ़रिश्ते उसके किनारों पर (सिमटे हुए) होंगे और तुम्हारे परवरदिगार का तख़्त उस दिन आठ फ़रिश्ते अपने ऊपर उठाये होंगे। उस दिन तुम पेश किये जाओगे, इस तरह के तुम्हारी कोई छुपी हुई बात भी छुपी ना रहेगी। (13-18)
सो इसी तरह जब सूर में एक ही बार फूंक मारी जायेगी और ज़मीन और पहाड़ों को उठा कर एक ही चोट में चूरा-चूरा कर दिया जाएगा तो उस दिन होने वाली हो जाएगी और आसमान फट जायेगा, फिर (तुम देखोगे के) उस दिन वह बहुत ही क्षीण होगा, और फ़रिश्ते उसके किनारों पर (सिमटे हुए) होंगे और तुम्हारे परवरदिगार का सिंहासन उस दिन आठ फ़रिश्ते अपने ऊपर उठाये होंगे। उस दिन तुम पेश किये जाओगे, इस तरह कि तुम्हारी कोई छुपी हुई बात भी छुपी ना रहेगी। (13-18)
फिर जिस का नामा-ए-आमाल उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, वह कहेगा: लो पढ़ो, मेरा नामा-ए-आमाल, मुझे यह ख्याल रहा के (एक दिन) मुझे अपने इस हिसाब से दो चार होना है। चुनाँचे वह एक दिल पसंद ऐश में होगा, बहिश्त-ए-बरीँ में, जिस के मेवे झुक रहे होंगे- अब खाओ और पीयो मज़े से अपने उन आमाल के सिले में जो तुमने गुज़री हुई दुनिया में किये हैं। (19-24)
फिर जिस का कर्म-पत्र उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, वह कहेगा: लो पढ़ो, मेरा कर्म-पत्र, मुझे यह ख्याल रहा कि (एक दिन) मुझे अपने इस हिसाब से दो चार होना है। इसलिए वह एक मनचाहे सुख में होगा, उच्च स्वर्ग में, जिस के फल झुक रहे होंगे- अब खाओ और पीयो मज़े से अपने उन कर्मों के बदले में जो तुमने गुज़री हुई दुनिया में किए हैं। (19-24)
और जिस का नामा-ए-आमाल उस के बाएं हाथ में दिया जाएगा, वह कहेगा: ऐ काश, मेरा यह नामा-ए-आमाल मुझे न मिलता और मेरा हिसाब क्या है, मैं उस से बेख़बर ही रहता! ऐ काश, वही मौत फ़ैसला-कुन हो जाती! मेरा माल मेरे क्या काम आया? मेरी सब बादशाही मुझसे लुट गयी- इस को पकड़ो और इस की गर्दन में तौक़ डाल दो। फिर इस को दोज़ख में झोंक दो। फिर एक ज़ंजीर में डाल दो जिस की नाप गज़ो में सत्तर गज़ है- यह न अल्लाह बुज़ुर्ग-ओ-बरतर को मानता था और न फकीरों को खाना खिलाने की तर्ग़ीब देता था। इसलिए आज यहाँ इस का कोई ग़म-ख़्वार नहीं है। और धोवन के सिवा इस के लिए कोई खाना नहीं है। इस को यह गुनहगार ही खायेंगे। (25-37)
और जिस का कर्म-पत्र उस के बाएं हाथ में दिया जाएगा, वह कहेगा: ऐ काश, मेरा यह कर्म-पत्र मुझे न मिलता और मेरा हिसाब क्या है, मैं उस से बेख़बर ही रहता! ऐ काश, वही मौत निर्णायक हो जाती! मेरा माल मेरे क्या काम आया? मेरी सब सत्ता मुझसे लुट गयी- इस को पकड़ो और इस की गर्दन में पट्टा डाल दो। फिर इस को नरक में झोंक दो। फिर एक ज़ंजीर में डाल दो जिस की नाप गज़ो में सत्तर गज़ है- यह न अल्लाह को मानता था जो सबसे उच्च और महान है और न फकीरों को खाना खिलाने पर उभारता था। इसलिए आज यहाँ इस से कोई सहानुभूति रखने वाला नहीं है। और धोवन के सिवा इस के लिए कोई खाना नहीं है। इस को यह गुनहगार ही खायेंगे। (25-37)
सो नहीं, (यह किसी शैतान का इल्हाम नहीं है), में उसकी शहादत पेश करता हूँ जिसे तुम देखते हो और उसकी भी जिसे तुम नहीं देखते के बेशक, यह एक रसूल-ए-करीम का कलाम है और यह किसी शायर का कलाम नहीं है, तुम लोग कम ही मानते हो। और न किसी काहिन का कलाम है, तुम लोग कम ही समझते हो। यह रब-उल-आलमीन की तरफ से नाज़िल हुआ है। हमारा यह पैग़म्बर अगर अपनी तरफ से कोई बात हम पर बना लाता तो हम इस को क़वी हाथ से पकड़ लेते, फिर इसकी रग-ए-गर्दन काट देते, फिर तुम में से कोई हमें इस काम से रोक न सकता। यह तो दर-हक़ीक़त डरने वालो के लिए एक याददिहानी है। हम खूब जानते हैं के तुम में (इस के) झुठलाने वाले भी हैं। (यह इसी तरह झुठलाते रहेंगे) और (क़यामत में) इन मुन्किरों के लिए यक़ीनन यह एक पछतावा बन जाएगा। इस में शुबा नहीं के यह एक यक़ीनी हक़ है। इस लिए, (ऐ पैग़म्बर इन्हें छोड़ो और) अपने रब-ए-अज़ीम के नाम की तस्बीह करते रहो। (38-52)
सो नहीं, (यह किसी शैतान की प्रेरणा नहीं है), में उसकी गवाही पेश करता हूँ जिसे तुम देखते हो और उसकी भी जिसे तुम नहीं देखते की बेशक, यह एक प्रतिष्ठित रसूल का कलाम है और यह किसी शायर का कलाम नहीं है, तुम लोग कम ही मानते हो। और न किसी भविष्यवक्ता का कलाम है, तुम लोग कम ही समझते हो। यह सारे जहॉंन के रब की तरफ से उतारा गया है। हमारा यह पैग़म्बर अगर अपनी तरफ से कोई बात हम पर बना लाता तो हम इस को शक्तिशाली हाथ से पकड़ लेते, फिर इसकी गर्दन की नस काट देते, फिर तुम में से कोई हमें इस काम से रोक न सकता। यह तो हक़ीक़त में डरने वालो के लिए एक याददिहानी है। हम खूब जानते हैं के तुम में (इस के) झुठलाने वाले भी हैं। (यह इसी तरह झुठलाते रहेंगे) और (क़यामत में) इन झुठलाने वालों के लिए यक़ीनन यह एक पछतावा बन जाएगा। इस में शक नहीं के यह एक यक़ीनी सत्य है। इस लिए, (ऐ पैग़म्बर इन्हें छोड़ो और) अपने महिमावान रब के नाम की स्तुति करते रहो। (38-52)
– जावेद अहमद ग़ामिदी