हदीस की व्याख्या (तशरीह) में आम तरीका है कि हर हदीस को स्वतंत्र रूप से समझा जाता है भले ही खबर के अलग-अलग संस्करण हों जिनमें अलग बाते बयान हो रही हों। इसका नतीजा यह निकलता है कि वह पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पाती जिसके बारे में हुक्म दिया गया था और अधूरी जानकारी के ऊपर अंदाज़े से एक हुक्म निकाल लिया जाता है।
यह बात समझना बहुत ज़रूरी है कि एक हदीस के सभी संस्करण, उससे जुड़ी सभी खबरों पर गौर करने के बाद ही उसके बारे में कोई राय बनाई जा सकती है।
इस बात को समझाते हुए ग़ामिदी साहब लिखते हैं:[1]
कई बार व्यक्ति एक हदीस के सभी संस्करण ना पढ़कर कर उससे एक राय कायम कर लेता है हालांकि जब वह उस हदीस के सभी संस्करणों का बारीकी से अध्ययन करता है तब उसकी पूरी व्याख्या ही बदल जाती है। इसका एक उदाहरण वह हदीसें हैं जिनमें तस्वीरों और चित्रकला पर रोक लगाये जाने का ज़िक्र है। अगर इन में से कुछ को देखा जाए तो बड़े आराम से यह नतीजा निकाला जा सकता है कि हर तरह की तस्वीरों और चित्रों के लिए पूरी तरह से मनाही हैं। हालांकि, जब इन हदीसों के सारे संस्करण जमा करके उनपर गौर किया जाता है तो यह बात बिलकुल साफ़ हो जाती है कि यह रोक सिर्फ उन तस्वीरों के लिए है जो पूजा-आराधना के लिए बनाई जाती हैं। हदीस की किताबों से इस तरह की और भी मिसालें दी जा सकती हैं, इसलिए यह ज़रूरी है कि हदीस के मामले में सभी संस्करण यानी उस बारे में मौजूद सभी खबरों पर गौर किये बिना कोई राय ना बनायी जाये।