क्या एक मुसलमान शासक बहुमत के फैसले को बदल सकता है ?
लेखक: शेहज़ाद सलीम अनुवाद: मुहम्मद असजद आमतौर निम्नलिखित आयत की बुनियाद पर यह…
लेखक: शेहज़ाद सलीम अनुवाद: मुहम्मद असजद आमतौर निम्नलिखित आयत की बुनियाद पर यह…
लेखक: जावेद अहमद ग़ामिदी अनुवाद: मुहम्मद असजद पोते की विरासत में दादा और दादा की विरासत में पोते का कोई हिस्सा साफ तौर पर तो कुरआन में बयान नहीं हुआ, लेकिन أولاد (औलाद) और آبا (आबा) के शब्दों में लुग़त (शब्दकोश) और उर्फ़ (इस्तेमाल), दोनों के एतबार से दादा और पोता भी शामिल हो जाते…
Author: Javed Ahmad Ghamidi According to the Qur’ānic directive of Amruhum Shūrā Baynahum (Their system is based on their consultation, (42:38)), the details of the methodology adopted by the Prophet (sws) and his companions for the participation of the Muslims in the affairs of the state in their own times, keeping in view their social…
Author: Amin Ahsan Islahi (d. 1997) The ḥadīth literature basically consists of individual-to-individual reports (akhbār-i āḥād). It is, therefore, necessary for us to properly grasp the issue of the authenticity of akhbār-i āḥād. The extraordinary importance the Ḥadīth holds as the source of the religion and the sharī‘ah, requires that we fully appreciate the implications…
Muslims remained a great power in this world for almost a thousand years. No nation was able to compete with them with regard to knowledge and wisdom, political acumen and affluence. They reigned over the whole world during this period. This kingdom was given to them by God and it was God who took it…
There are some major misconceptions about this issue. Muslim societies had monarchs ruling them for a very long period, stretching about a thousand years. Therefore, their system of government was based on monarchy. Excluding the period of the Rightly Guided Caliphs which consisted of a democratic system of governance, the rest of the time it…
लेखक: शेहज़ाद सलीम अनुवाद: मुहम्मद असजद आमतौर पर यह माना जाता है कि सभी गैर-मुसलिम काफ़िर हैं जिनको कुरआन[1] में निंदा (मज़म्मत) और दंड के योग्य बताया गया है। यह धारणा सही नहीं है। एक व्यक्ति काफ़िर तब बनता है जब वह सच को पहचान ले और उस पर पूरी तरह आश्वस्त (कायल) हो और…
लेखक – जावेद अहमद ग़ामिदी अनुवाद और टीका – मुश्फ़िक़ सुलतान नबी (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के क़ौल (कथन), फेअल (कार्य) और 'तक़रीर-व-तस्वीब'[1] (स्वीकृति एवं पुष्टि) की रिवायतों (उल्लेख परंपरा) को इस्लामी परिभाषा में 'हदीस' कहा जाता है। यह रिवायतें अधिकतर 'अखबार–ए-आहाद'[2] के तौर पर हम तक पहुंची हैं। इनके बारे में यह बात तो स्पष्ट…
Question The Prophet has said that two groups in my ummah (group of my followers) shall be successful. One which fights in Hind (India) and the other that accompanies Hadhrat Isa (Jesus) when he comes back. Can we say that the freedom fighters of Kashmir belong to the first of the two groups mentioned by…
(Read the original article in Urdu: http://www.javedahmadghamidi.com/books/view/ghazwa-e-hind-ki-kamzor-aur-ghalat-riwayaat-ka-jaiza) लेखक: मुहम्मद फारूक खां अनुवाद: मुहम्मद असजद हमारे दीन की तालीमात (शिक्षाएँ) बिलकुल साफ़ और वाज़ेह हैं, क्योंकि उन की बुनियाद कुरआन मजीद और सहीह हदीसों[1] पर है। कुरआन मजीद के मामले में तो किसी शक (संदेह) की गुंजाइश नहीं है, लेकिन क्योंकि हदीसें एक इंसान से दूसरे इंसान…