अधिकतर विद्वानों (आलिमों) की राय है कि महिलाएं अकेले सफ़र नहीं कर सकतीं। उनके साथ कोई महरम (कोई ऐसा रिश्तेदार जिसके साथ शादी नहीं की जा सकती) होना ज़रूरी है। इसलिए उन्हें किसी यात्रा, जैसे की हज पर भी अकेले जाने की इजाज़त नहीं है।
निम्नलिखित हदीसें इस राय का आधार (बुनियाद) हैं:
अबू हुरैरा रसूलअल्लाह (स.व) से रवायत करते हैं: “जो महिला अल्लाह और अंतिम दिन (आखिरत) पर विश्वास रखती हो उसे अनुमति नहीं कि वह बिना किसी महरम के एक दिन और एक रात की यात्रा करे।”[1]
अबू सईद ख़ुदरी रसूलअल्लाह (स.व) से रवायत करते हैं: “एक महिला को बिना पति या बिना महरम के दो दिन की यात्रा से मना किया गया है।”[2]
यह बात समझ लेनी चाहिए कि काफी सारी हदीसें ऐसी हैं जिनमें रसूलअल्लाह (स.व) ने मुसलमानों की भलाई के लिए हिदायात दी हैं और यह शरीअत का हिस्सा नहीं है। इसके अलावा यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर कोई निर्देश (हुक्म) किन्ही खास हालात को देखते हुए दिया गया है और वह हालात ही बदल गये है तो फिर ऐसे मामलों में ज़रूरी नहीं कि वह निर्देश बदले हुए हालात में भी लागू हों।
मुसलिम औरतों को सफ़र के लिए दिया गया यह निर्देश भी कुछ ऐसा ही है यानी यह हुक्म कुछ खास हालात के लिए है और अपना एक पसमंज़र रखता है। जिस समय अरब समाज संघर्ष और अराजकता (anarchy) में डूबा हुआ था तब रसूलअल्लाह (स.व) ने महिलाओं के सफ़र को सुरक्षित बनाने और उन्हें किसी भी तरह के बदनाम करने वाला आरोपों से बचाने के लिए यह निर्देश दिया कि वह किसी महरम के साथ ही यात्रा करें।
इसलिए, अगर आज भी किसी यात्रा के समय यही हालात हैं और इसी तरह का खतरा मौजूद है तब तो महरम के साथ यात्रा करने के निर्देश का पालन करना ही चाहिए। हालांकि, आज के बदले हुए आधुनिक दौर में सफ़र का तरीका पूरी तरह बदल गया है। सफ़र के ऐसे ज़रिये मौजूद हैं जिनमें औरतें शारीरिक और नैतिक दोनों तरह से सुरक्षित हैं। इस तरह के मामलों में महरम साथ होने का निर्देश लागू नहीं होता। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि कौन सी यात्रा सुरक्षित हो गयी है और कौन सी नहीं तो इसका फैसला औरतों को हालात पर गौर कर खुद ही करना चहिये।
– शेहज़ाद सलीम
अनुवाद: मुहम्मद असजद