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दाढ़ी रखने और पाजामा नीचे न लटकाने का मुददा
दाढ़ी मर्द रखते रहे हैं। पैग़म्बर सल्ल. ने भी दाढ़ी रखी हुई थी। आपके मानने वालों में कोई शख़्स अगर आपके साथ अपने दिली सम्बंध और आपकी नक़ल करने के जज़्बे से दाढ़ी रखता है तो इसे सवाब की बात समझ सकते हैं लेकिन यह दीन का कोई हुक्म नहीं है। इसलिए कोई मुसलमान अगर दाढ़ी नहीं रखता है तो हम यह नहीं कह सकते कि वह किसी फ़र्ज़ या वाजिब को छोड़ने वाला है या उसने कोई हराम या मना किया हुआ काम किया है। पैग़म्बर सल्ल. ने इस मामले में जो कुछ फ़रमाया है वह दाढ़ी रखने का निर्देश नहीं है बल्कि इस बात की मनाही है कि दाढ़ी और मूंछें रखने का कोई ऐसा ढंग अपनाया जाए जो अंहकारी हो। अहंकार और घमण्ड एक बड़ा जुर्म है। यह इंसान की चाल ढाल, बातचीत, रख-रखाव, औढ़ने पहनने और उठने बैठने के ढंग हर चीज़ में ज़ाहिर होता है। यही मामला दाढ़ी और मूंछों का भी है। कुछ लोग दाढ़ी मूंढते हैं या छोटी रखते हैं लेकिन मूंछें बहुत बढ़ा लेते हैं। पैग़म्बर सल्ल. ने इसे पसन्द नहीं किया और इस तरह के लोगों को निर्देश दिया कि अहंकारियों का ढंग न अपनाएं। वो अगर बढ़ाना चाहते हैं तो दाढ़ी बढ़ा लें मगर मूंछें हर हाल में छोटी ही रखें। (बुख़ारी 5892; मुस्लिम 602)
पैग़म्बरों के ज़रिए से जो हिदायत इंसान को मिली है उसका विषय इबादतें हैं, बदन पाक रखना है, पाकीज़ा चीज़ें खाना पीना है और अपना चरित्र व नैतिक आचरण पाक रखना है। पैग़म्बर सल्ल. ने जो कुछ फ़रमाया है वह आचरण को पाक और दुरुस्त करने के मक़सद से फ़रमाया है। दाढ़ी के सम्बंध में आपकी नसीहत का सही मतलब यही था लेकिन लोगों ने इसे दाढ़ी बढ़ाने का आदेश समझा और इस तरह एक ऐसी चीज़ को दीन का लाज़मी हिस्सा बना दिया जो दीन का कोई बुनियादी हिस्सा नहीं है।
यही मामला टख़नों से नीचे पायजामा या पेंट लटकाने का है। इस्लाम पूर्व युग के अरब में अहंकारियों की यह रीति थी कि लम्बा कमीज़ पहनेंगे, पगड़ी का पल्लू कमर से नीचे तक लटकता हुआ होगा, नीचे का कपड़ा (लुंगी, पायजाया वग़ैरह) टख़नों से इतना नीचे होगा कि जैसे आधी ज़मीन पर घसिट रहा है। अरबी भाषा में इसे इस्बाल कहते हैं। पैग़म्बर सल्ल. ने इसे सख़्ती से ना-पसन्द किया और फ़रमाया कि अल्लाह क़ियामत के दिन उस आदमी को देखना भी पसन्द नहीं करेंगे जो घमण्ड से अपनी लुंगी घसीटते हुए चलता हो। इस बारे में सारी रिवायतें इसी संदर्भ में हैं।
तहबन्द (लुंगी) के बारे में अलबत्ता यह बात कही जा सकती है कि उसे टख़नों यानी पांव के गटटों से नीचे लटकता हुआ छोड़ दिया जाए तो अहंकारियों के ढंग से समानता पैदा होती है इसलिए इसे लटकाने की वजह अहंकार न भी हो तो भी इससे बचना चाहिए। यह बात कही जा सकती लेकिन इसके साथ यह भी सच्चाई है कि यह समानता तहबन्द में होती है, हमारी शलवार, पाजामे और पतलून से इसका सम्बंध नहीं है।
2008