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दीन का स्रोत
अल्लाह ने इंसान को पैदा किया तो दो चीज़ें उसके अन्दर रख दींः एक यह भावना कि उसका एक बनाने वाला या पैदा करन वाला है जो उसका मालिक है। दूसरी यह भावना या समझ कि क्या काम अच्छा है और क्या बुरा है? इन दोनों भावनाओं के अलावा भी बहुत सी चीजें़ अल्लाह ने इंसान के अन्दर रखी हैं जिन्हें याद दिलाया जाए तो समय के साथ इंसान के ज्ञान और कर्म में प्रदर्शित हो जाती हैं। ये दोनों चीज़ें भी इसी तरह रखी गयी हैं।
इसे ही हम असिल दीन या दीन का मूल कह सकते हैं जो अल्लाह ने इंसीन को उसी समय सिखा दिया जब अल्लाह ने इंसान को पैदा किया। फिर अल्लाह ने इंसानों के बीच में से समय समय पर कुछ लोगों को चुना, उन्हें अपना संदेश दिया और उन्हें इंसानों की तरफ़ भेज दिया कि जाओ और मेरा यह संदेश इंसानों को पहुंचाओ। यही वो लोग हैं जिन्हें पैग़म्बर और नबी या रसूल कहा जाता है। ये आए और अल्लाह ने जो दीन मौलिक रूप से इंसान के अन्दर रखा था उसकी सारी आस्थाएं और नियम व संस्कार खोल खोल कर इंसान को बता दिए।
यह सिलसिला पहले इंसान हज़रत आदम अलैहिस्सलाम (उन पर सलाम हो) से शुरू हुआ और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर ख़त्म हो गया। अल्लाह ने यह बात बता दी है कि मुहम्मद सल्ल. पैग़म्बरों की इस श्रंखला की अन्तिम कड़ी हैं, अब आप सल्ल. के बाद कोई पैग़म्बर नहीं आएगा। लिहाज़ा अब मुहम्मद सल्ल. ही वह एक मात्र माध्यम हैं जिन से दीन लिया जाता है और सच्चा दीन वही है जो आपने बताया, जो कुछ आपने अपनी ज़बान से फ़रमाया कि यह अल्लाह का दीन है, या अपने अमल से व्यवहारिक रूप में बता दिया या कोई चीज़ दीन समझ कर आप के सामने की गयी और आप ने उससे मना नहीं किया।
हज़रत मुहम्मद सल्ल. से यह दीन आपके जीवन में हज़ारों लोगों ने सीखा और आपके सामने उसको व्यवहार में बर्ता। यह सिलसिला कभी नहीं टुटा। आप सल्ल. के मानने वाले पीढ़ी दर पीढ़ी इस दीन को पढ़ते पढ़ाते रहे, ज़बान व क़लम से दूसरों को बताते रहे और उस पर अमल करते हुए उसको आगे पहुंचाते रहे। अब यह हम तक पहुंच गया है और हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि हम तक यह ठीक उसी तरह पहुंच गया है जिस तरह हज़रत मुहम्मद सल्ल. ने उन लोगों को दिया था जो आपके जीवन में आपको अल्लाह का पैग़म्बर मान कर आपके साथी (सहाबी) बन गए थे।
हमारे इस विश्वास का आधार यह है कि हर पीढ़ी में उसके मानने वालों की इतनी बड़ी संख्या ने और इतने अलग अलग क्षेत्रों में उसको अपनी भाषा से, अपने क़लम से और अपने अमल से आगे पहुंचाया है कि उनके बारे में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि वो सब मिल कर झूट बोल सकते हैं या ग़लती कर सकते हैं। ज्ञान की भाषा में इसे ‘‘इज्माअ” (सर्वसहमति) और ‘‘तवातुर” (निरन्तरता) कहा जाता है। अक़ल रखने वाले सभी लोग इस बात को मानते हैं कि इस तरीक़े से जो बात एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचे वह निश्चित होती है।
यह दो रूपों में हम तक पहुंचा हैः
एक क़ुरआन, दूसरे सुन्नत (पैग़म्बर साहब का आचरण)
क़ुरआन वही किताब हैं जिसे मुसलमान क़ुरआन कहते हैं। अल्लाह ने यह किताब अपने एक फ़रिश्ते हज़रत जिब्रईल के माध्यम से मुहम्मद सल्ल. के दिल पर उतारी। यह किताब जिन शब्दों में और जिस तरह उतारी गयी, आपने उसी तरह और उन्ही शब्दों में इसे लोगों को बार बार पढ़ कर सुनाया। आपके मानने वालों ने इसको आपसे सुन कर याद किया और जो लोग लिखना जानते थे उन्होंने इसे लिख कर अपने पास रख भी लिया। ये लोग हज़ारों की संख्या में थे। इनमें से किसी ने एक सूरत (अध्याय), किसी ने दो सूरतें, किसी ने तीन सूरतें, किसी ने दस बीस सूरतें और किसी किसी ने पूरा क़ुरआन याद किया या अपने पास लिख कर रखा। अगली पीढ़ी के लोगों ने भी यही किया। मुसमलानों की हर पीढ़ी में लोग यही करते रहे। अब भी यह मुसलमानों के हर घर में लिखी हुई मौजूद है और दुनिया में लाखों इंसान अब भी इसको पहले हर्फ़ (अक्षर) से आख़री हर्फ़ तक बिना देखे सुना सकते हैं। यह इसी का नतीजा है कि लोगों की हज़ार कोशिशों के बावजूद इसमें कोई बदलाव न इससे पहले हो सका है और न अब हो सकता है। इसलिए यह बिल्कुल निश्चित है कि इस समय जो क़ुरआन हमारे हाथों में है वह अक्षरतः वही किताब है जो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर उतरी थी और आपने अपने मानने वालों को उस समय दी थी।
यही मामला सुन्नत का है। मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जिस समुदाय में पैदा हुए उसके सब लोग हज़रत इब्राहीम की संतान थे। अल्लाह ने आपको हुक्म दिया कि आप उस तरीक़े का अनुसरण करें जो हज़रत इब्राहीम का तरीक़ा था। इस तरीक़े की कुछ चीज़ें उसी तरह तब तक चली आ रही थीं जिस तरह हज़रत इब्राहीम उन्हें अपनी संतान में छोड़ गए थे। लेकिन कुछ चीज़ें भुला दी गयी थीं और कुछ में बिगाड़ आ गया था और ग़लत तरीक़े से बरती जा रही थीं। भूली हुई चीज़ों को मुहम्मद सल्ल. ने उनहें याद दिलाया, उनमें जो ग़लतियां हो रही थीं उनको ठीक किया और अल्लाह के हुक्म से उनमें इज़ाफ़ा भी किया, फिर अपने मानने वालों को पाबन्द कर दिया कि वो उन्हें अपनाएं। यही सब चीज़ें थीं जिन्हें आपकी ‘सुन्नत’ कहा जाता है। इनमें से अधिकतर क़ुरआन से पहले की चीज़ें हैं जिनसे अरब के सब लोग बाख़बर थे, इसलिए क़ुरान जब उनका ज़िक्र करता है तो ऐसी चीज़ों के तौर पर करता है जिन्हें सब जानते हैं। इन्हें किसी विस्तार से या किसी नई चीज़े के रूप में बताने की ज़रूरत नहीं थी।
यह बिल्कुल उसी तरह हम तक पहुंची है जिस तरह क़ुरआन पहुंचा है। मुसलमानों की हर पीढ़ी ने पिछलों से लेकर उन पर अमल किया और आगे आने वालों तक पहुंचाया। मुहम्मद सल्ल. के ज़माने से लेकर आज तक यह सिलसिला उसी तरह बना हुआ है। इसलिए यह सुनिश्चत है। सुबूत की दृष्टि से इनमें और क़ुरआन में कोई अन्तर नहीं है।
2015