कुछ विद्वानों (आलिमों) की राय हैं कि गैर-मुसलमानों से सूद लिया जा सकता है। यहाँ यह समझ लेना चहिए कि इंसानों से सूद लेना हराम किया गया है, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम क्योंकि यह एक अनैतिक अनुबंध (गैर-अखलाकी माएहदा) है। जो चीज़ें अनैतिक हैं वह मना हैं, चाहे मुसलमानों से संबंधित हों या गैर-मुस्लिमों से। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जिस तरह एक इंसान को सिर्फ मुसलमानों के साथ ईमानदार नहीं बल्कि गैर-मुस्लिमों के साथ भी ईमानदार होना चाहिए उसी तरह सूद के मामले में भी धर्म के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जा सकता।
जो लोग गैर-मुसलमानों से सूद लेने को सही ठहराते हैं वह एक हदीस[1] का हवाला देते हैं। ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह हदीस सही नहीं है और हदीस की छे: मुख्य किताबों में भी मौजूद नहीं है। यह कुरआन के भी खिलाफ जाती है।
– शेहज़ाद सलीम
अनुवाद: मुहम्मद असजद
[1]. हदीस कमज़ोर (ज़ईफ) है क्योंकि यह एक मुर्सल हदीस है और कुछ उस तरह है:
मखूल रसूलअल्लाह (स.व) से रवायत करते हैं: "मुसलमानों और उनसे जंग करने वालों के बीच कोई सूद नहीं है”