कुछ लोगों का मानना है कि कुरआन के अंदर मुकम्मल इल्म मौजूद है और हमारे किसी भी सवाल का जवाब कुरआन में मिल जायेगा, इस राय की पुष्टि के लिए यह आयत पेश की जाती है:
مَّا فَرَّطْنَا فِي الْكِتَابِ مِن شَيْءٍ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يُحْشَرُونَ
[٦: ٣٨]
हमने इस किताब के बाहर कोई चीज़ नहीं छोड़ी है। फिर सब अपने रब के सामने इकट्ठा किए जायेंगे। (कुरआन 6:38)
अगर आयत के सन्दर्भ (मोज़ू) पर हम थोड़ा विचार करें तो यह साफ हो जाता है कि यहाँ एक ख़ास मामले का बयान है और उसके अलावा इसका कोई और मतलब निकालना गलत है, कुरआन की आयत 6:37 में आया है कि रसूल की दावत का इनकार करने वाले उनसे मांग करते थे की कोई निशानी दिखाएँ ताकि उन्हें विश्वास हो सके। इसके बाद की आयात से साफ़ हो जाता है कि “निशानी” से मतलब वह दंड है जिसकी चेतावनी उन्हें रसूल का इनकार करने पर दी जा रही थी:
قُلْ أَرَأَيْتَكُمْ إِنْ أَتَاكُمْ عَذَابُ اللَّهِ أَوْ أَتَتْكُمُ السَّاعَةُ أَغَيْرَ اللَّهِ تَدْعُونَ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَبَلْ إِيَّاهُ تَدْعُونَ فَيَكْشِفُ مَا تَدْعُونَ إِلَيْهِ إِن شَاءَ وَتَنسَوْنَ مَا تُشْرِكُونَ
[٦: ٤٠-٤١]
कहो, यह बताओ कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना आये या प्रलय आ जाये तो क्या तुम अल्लाह के अतिरिक्त किसी और को पुकारोगे। बताओ यदि तुम सच्चे हो। बल्कि तुम उसी को पुकारोगे। फिर वह दूर कर देता है उस विपत्ति को जिसके लिए तुम उसको पुकारते हो, यदि वह चाहता है। और तुम भूल जाते हो उनको जिन्हें तुम साझीदार ठहराते हो। (6:40-41)
कुरआन में काफी जगह काफिरों (इनकार करने वालो) का हवाला देकर बताया गया है कि वह उस दंड को देखने की मांग करते थे जिसकी चेतावनी मुहम्मद (स.व) उन्हें देते थे ताकि वह यह देख सकें कि मुहम्मद (स.व) अल्लाह के सच्चे रसूल हैं, और हर बार कुरआन ने जवाब दिया है कि अगर उन्हें कोई निशानी दिखा दी गयी तो फिर उन्हें और मोहलत नहीं दी जाएगी और उनका विनाश कर दिया जायेगा, तो उनके लिए बेहतर है कि उस अंतिम निशानी की मांग करने के बजाये वह अपने आस-पास और खुद अपने अंदर बड़ी संख्या में मौजूद दूसरी निशानियों पर ध्यान दें, यही वह बात है जो आयत 6:37 में और 6:38 के शुरू में कही गयी है:
وَقَالُوا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ قُلْ إِنَّ اللَّهَ قَادِرٌ عَلَىٰ أَن يُنَزِّلَ آيَةً وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَوَمَا مِن دَابَّةٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا طَائِرٍ يَطِيرُ بِجَنَاحَيْهِ إِلَّا أُمَمٌ أَمْثَالُكُم
[٦: ٣٧-٣٨]
और वह कहते हैं कि रसूल पर कोई निशानी उसके पालनहार की ओर से क्यों नहीं उतारी गई। कहो, अल्लाह निस्सन्देह क्षमता रखता है कि कोई निशानी उतारे, परन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते। और जो भी जीव धारी पृथ्वी पर चलता है और जो भी पक्षी अपने दोनों पंखों से उड़ता है, वह सब तुम्हारी ही तरह के समुदाय हैं। हमने इस किताब के बाहर कोई चीज़ नहीं छोड़ी है। फिर सब अपने रब के सामने इकट्ठा किए जायेंगे। (6:37-38)
इनकार करने वालो को बताया गया है कि अल्लाह हर तरह से क्षमता रखता है कि ऐसी निशानी दिखा दे लेकिन अधिकतर लोग इसके नतीजे को नहीं जानते, जब इस तरह की निशानी दिखाई जाती है तो वह एक संकेत होता है आने वाले विनाश का, तो इस तरह की निशानी की मांग करने के बजाय वह अपने चारों ओर देखें और विचार करें तो उन्हें ईश्वर की निशानियां हर तरफ फैली हुई नज़र आएंगी। अगर वह पशु, पक्षियों पर भी गौर करें तो इन प्रजातियों के एकल और सामूहिक (इज्तिमाई) जीवन में उन्हें अल्लाह की प्रभुता, दया, क्षमता, विधि और प्रज्ञता (हिकमत) नज़र आएगी, और इस बात से यह भी ज़ाहिर हो जाता है कि दुनिया को अल्लाह ने एक विशेष उद्देश्य (मकसद) से बनाया है।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो वाक्यांश “हमने इस किताब के बाहर कोई चीज़ नहीं छोड़ी है” को इसके संदर्भ में समझा जाये तो इसका मतलब है कि जहाँ तक विश्वास करने और ईमान लाने के लिए निशानियों की बात है तो इस किताब कुरआन में वह काफी हैं और कोई चीज़ छोड़ी नहीं गयी है। इस आयत का अर्थ यह नहीं है कि हर मामले में संपूर्ण ज्ञान इस किताब में रख दिया गया है।
– शेहज़ाद सलीम
अनुवाद: मुहम्मद असजद