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क़ुरआन का मूल विषय
क़ुरआन के बारे में यह बात उसको पढ़ने वाला एक साधारण आदमी भी आसानी से समझ सकता है कि क़ुरआन का विषय वो सच्चाईयां हैं जिनको मानने और जिनके तक़ाज़ों को पूरा करने पर ही इंसान की मुक्ति (अबदी फ़लाह) का दारो मदार है। वह इन सच्चाइयों को प्राकृतिक तथ्यों, इंसानी अस्तित्व की सच्चाइयों और ऐतिहासिक तथ्यों से साबित करता है, इंसानों को इन सच्चाईयों पर ईमान लाने की दावत देता है, इन सच्चाइयों को झुटलाने के नतीजों से उन्हें ख़बरदार करता है और इनसे जो तक़ाज़े सामने आते हैं उनको खोल कर बयान करता और स्पष्ट करता है। अपने इस मक़सद को समझाने के लिए वह लौकिक जगत और दुनिया के भौतिक तथ्यों के बारे में बहुत से इशारे देता है और ये सारे इशारे कभी हक़ीक़त के विपरीत नहीं होते, लेकिन इस दुनिया के बारे में जो ज्ञान और खोज और भौतिक व रासायनिक क्रियाओं की समझ इंसान ने ख़ुद से प्राप्त की है और आने वाले ज़मानों में भी जो और कुछ जानकारियां इंसान को मिलेंगी उन्हें क़ुरआन मजीद चर्चा का विषय नहीं बनाता। ये उसका मूल विषय नहीं हैं।
लेकिन यह एक विडम्बना है कि क़ुरआन को मानने वाली उम्मत में से कुछ लोग ऐसे होते रहे हैं जिन्होंने क़ुरआन के बारे में यह सोच रखी कि यह चूंकि अल्लाह की किताब है इसलिए दुनिया की सारी जानकारियां और हुनर की शिक्षा इसमें मिलना ही चाहिए। चुनांचि ऐसी जानकारियों और खोजों का सिरा उन्होंने क़ुरआन में ढूंढने की कोशिश की और यह दावे किये कि क़ुरआन से इसकी सीख मिलती है। ऐसे लोगों ने क़ुरआन की भाषा और शैली को नज़र अंदाज़ करके और क़ुरआन के बयान में जो विशेषता पाई जाती है उसकी दलीलों को अनदेखा करके यूनान के फ़लसफ़ियों की बातों को भी क़ुरआन से साबित करने की कोशिश की, कभी उन्हों ने किसी युग विशेष में साइंस के द्वारा की जाने वाली किसी खोज या जानकारी के बारे में यह दावा किया कि वह बात क़ुरआन की उक्त आयत से ली गयी है, कभी मेडिकल साइंस और आस्ट्रोनोमी के कुछ सिद्धांत क़ुरआन से बरामद करने की कोशिश की, और कभी इंसान के ऐटम बम बनाने और चांद पर पहुंचने का ज़िक्र इसमें से निकाल कर दिखाया गया।
यह सारी एक्सरसाइज़ ऐसे लोगों को केवल इस लिए करनी पड़ी कि उन्होंने इस किताब के बारे में ग़लत धारणा रखी। वो इस बात को नहीं समझे कि दुनिया के पालनहार ने इस किताब से पहले इंसान को अक़ल दी है। जिस तरह यह किताब पालनहार की कृपा और उसकी देन है उसी तरह अक़ल भी उसकी बख़्शी हुई है। जिन मामलों में अक़ल का मार्गदर्शन इंसान के लिए पर्याप्त है उनसे इस किताब को कोई ख़ास लेना देना नहीं है और जिन मुद्दों की यह किताब चर्चा करती है उनमें अक़ल इसके मार्गदर्शन से कभी बे नियाज़ नहीं हो सकती अगर अक़ल अपने वजूद से ही बेख़बर नहीं हो गयी है।
यह केवल क़ुरआन का ही मामला नहीं है, अल्लाह के पैग़म्बर ने अपने बारे में भी यह सच्चाई अपने मानने वालों को स्पष्ट तरीक़े से बताई है। मुसलमानों की मां सैयदा आयशा रज़ि. की रिवायत है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने लोगों को खजूरों में गाभा देते हुए देखा तो फ़रमायाः इसके बग़ैर ही ठीक है। उन्होंने उस साल गाभा नहीं लगाया। नतीजे के रूप में फ़सल अच्छी नहीं हुई। लोगों ने इस बात का ज़िक्र आप सल्ल. से किया तो आपने फ़रमाया कि तुम इस तरह के मामलों को मुझ से बहतर समझते हो। मैं तुम्हें अल्लाह का दीन बताने आया हूं, इसलिए मेरी तरफ़ केवल दीन सीखने के लिए रुख़ किया करो।
हम अगर क़ुरआन से वासत्व में हिदायत हासिल करना चाहते हैं तो ज़रूरी है कि दीन को समझने के लिए हम उससे रहनुमाई लिया करें। अपने सोने के लिए चारपाई बनाने और अपनी आवाज़ मंगल ग्रह तक पहुंचाने के लिए हमें अपनी अक़ल से काम लेना चाहिए। अक़ल ने इंसान को अपनी कार्यसीमा में कभी निराश नहीं किया है।
जबकि क़ुरआन हमें यह बताने के लिए नाज़िल किया गया ह कि अपने पालनहार की प्रसन्नता हम इस दुनिया में किन चीज़ों को मानकर और किन चीज़ों पर अमल करके प्राप्त कर सकते हैं। हमें उसकी आयतों में अपनी इच्छा के विषय ढूंढने के बजाए अपनी इच्छाओं को उसके अनुपालन के लिए मजबूर करना चाहिए। अल्लाह ने यह बात क़ुरआन में कई जगह स्पष्ट की है कि उससे हिदायत प्राप्त करने की पहली शर्त यही है। यह हो सकता है कोई व्यक्ति दुनिया के सारे ज्ञान इस किताब में देखने की इच्छा रखता हो लोकिन उसकी यह इच्छा इस सच्चाई को नहीं बदल सकती कि यह वह ज्ञान देने वाली किताब है जो इंसान की मुक्ति के लिए ज़रूरी है।
1987